धर्म एवं दर्शन >> अनमोल मोती अनमोल मोतीपूजा शर्मा
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अनमोल मोती
Anmol Moti - A Hindi Book - by Pooja Sharma
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
जीवन को सही दिशा में ले जाने का प्रयास हम सभी करते हैं लेकिन यदि हम महापुरुषों के बताए दिशा निर्देशों के अनुरूप चलें तो शायद हमारा जीवन सार्थक बन जाए। इस पुस्तक में न केवल भारत के बल्कि अरस्तु, बेकन, प्लेटो जैसे विदेशी महापुरुषों की भी अनमोल वाणी का समावेश किया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक में महान आत्माओं द्वारा कथित शाश्वत, सार्थक और प्रामाणिक वचनों का संकलन किया गया है। यह सागर को गागर में भरने का छोटा प्रयास है। आशा है, इस प्रयास द्वारा व्यक्ति की सोच को विवेक मिलेगा, सकारात्मक चिंतन प्रदान होगा और प्रत्येक समस्या का समाधान होगा, जिससे प्रत्येक व्यक्ति का जीवन सरल-सरस-सद्गुण और सद्भाव युक्त होकर सुखमय बन जाएगा।
प्रस्तुत पुस्तक में महान आत्माओं द्वारा कथित शाश्वत, सार्थक और प्रामाणिक वचनों का संकलन किया गया है। यह सागर को गागर में भरने का छोटा प्रयास है। आशा है, इस प्रयास द्वारा व्यक्ति की सोच को विवेक मिलेगा, सकारात्मक चिंतन प्रदान होगा और प्रत्येक समस्या का समाधान होगा, जिससे प्रत्येक व्यक्ति का जीवन सरल-सरस-सद्गुण और सद्भाव युक्त होकर सुखमय बन जाएगा।
नम्र निवेदन
प्रस्तुत पुस्तक में संगृहीत सूक्तियों को दस भागों में विभाजित किया गया है। सर्वप्रथम आध्यात्मिक चिन्तन के अंतर्गत व्यक्ति को एकमात्र अतीन्द्रिय स्वरूप अनुसंधान के उद्देश्य को प्राप्त करने का संदेश दिया गया है। जिससे प्रत्येक मनुष्य अपनी स्वाभाविक प्रसन्नता, संतुष्टि तथा शांति को प्राप्त करते हुए श्रेष्ठ जीवन जीने की कला सीख जाए। दार्शनिक चिन्तन के अनमोल मोती मनुष्य के भ्रम, भय संदेह, तर्क-वितर्क और समस्याओं को दूर कर रहे हैं। भारतीय संस्कृति तो समूची वसुधा के प्राण हैं। अतः भारत की संस्कृति मनुष्य जाति को आदर्शों, मर्यादाओं, प्रेम, त्याग और मानवीय मूल्यों का पाठ पढ़ा रही है। राष्ट्र के प्रति प्रेम मनुष्य का सर्वप्रथम कर्तव्य है। राष्ट्रवाद के अनमोल मोती भारतवासियों में देश प्रेम की भावना को जाग्रत कर रहे हैं। जिससे देश उन्नति के पथ पर अग्रसर रहे। राजनीतिक चिन्तन के अंतर्गत राज्य तथा उसके कार्य शासक तथा जनता के संबंध को जानकारी देने का प्रयास किया गया है।
इससे सच्ची गूढ़ रूप में मनुष्य को राजनैतिक सचेतता प्राप्त होगी। कोई राज्य नैतिक मूल्यों के बिना जीवित नहीं रह सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अन्याय, अत्याचार तथा अराजक परिस्थितियों के समापन के लिए नैतिक चिन्तन की सूक्तियों का संकलन किया गया है। नैतिक अनमोल मोतियों द्वारा सभ्य सुसंस्कृत समाज की स्थापना होगी। सामाजिक चिंतन के अंतर्गत व्यक्ति के आदर्शों और कर्तव्यों का चिन्तन किया गया है, जिससे सामाजिक व्यक्ति सहयोग और सेवा द्वारा समाज को समुन्नत बना सके। धार्मिक चिन्तन के अंतर्गत साम्प्रदायिक तनाव, लड़ाई-झगड़े और धार्मिक अंधविश्वास, कट्टरता और रूढ़िवाद को समाप्त करने का प्रयत्न किया गया है। यह धार्मिक अनमोल मोती मानवीय मूल्यों और चेतना को जाग्रत करेंगे। बिना अर्थ के अनर्थ है, इसी बात को ध्यान में रखते हुए अर्थ संबंधी सूक्तियों से जीवन को वैभवयुक्त बनाने का प्रयास किया गया है। अंत में मनोविज्ञान चिंतन में मनुष्य के चिंतन, व्यवहार और आचरण तथा स्वभाव को समझने का प्रयास किया गया है।
आशा है, हमारा यह छोटा-सा प्रयास आपके जीवन को निश्चित ही प्रकाशित करेगा।
इससे सच्ची गूढ़ रूप में मनुष्य को राजनैतिक सचेतता प्राप्त होगी। कोई राज्य नैतिक मूल्यों के बिना जीवित नहीं रह सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अन्याय, अत्याचार तथा अराजक परिस्थितियों के समापन के लिए नैतिक चिन्तन की सूक्तियों का संकलन किया गया है। नैतिक अनमोल मोतियों द्वारा सभ्य सुसंस्कृत समाज की स्थापना होगी। सामाजिक चिंतन के अंतर्गत व्यक्ति के आदर्शों और कर्तव्यों का चिन्तन किया गया है, जिससे सामाजिक व्यक्ति सहयोग और सेवा द्वारा समाज को समुन्नत बना सके। धार्मिक चिन्तन के अंतर्गत साम्प्रदायिक तनाव, लड़ाई-झगड़े और धार्मिक अंधविश्वास, कट्टरता और रूढ़िवाद को समाप्त करने का प्रयत्न किया गया है। यह धार्मिक अनमोल मोती मानवीय मूल्यों और चेतना को जाग्रत करेंगे। बिना अर्थ के अनर्थ है, इसी बात को ध्यान में रखते हुए अर्थ संबंधी सूक्तियों से जीवन को वैभवयुक्त बनाने का प्रयास किया गया है। अंत में मनोविज्ञान चिंतन में मनुष्य के चिंतन, व्यवहार और आचरण तथा स्वभाव को समझने का प्रयास किया गया है।
आशा है, हमारा यह छोटा-सा प्रयास आपके जीवन को निश्चित ही प्रकाशित करेगा।
पूजा शर्मा
1. आध्यात्मिक चिन्तन
आत्मा
• नित्य, सर्वव्यापक, अचल, स्थिर और शाश्वत आत्मा को आग जला नहीं सकती, पानी गीला नहीं कर सकता, वायु उड़ा नहीं सकती, शस्त्र काट नहीं सकते। यह आत्मा निःसन्देह शाश्वत है। —
गीत
• अंगूठे के परिमाण वाली अति लघु स्वरूप और सूक्ष्म आत्मा मनुष्य के भीतर सदा विद्यमान रहती है।
-कठोपनिषद्
* जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीव की आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नए शरीर को ग्रहण कर लेती है।
-गीता
* आत्मा का परमात्मा में मिलन ही जीव कल्याण का परम कारक है
-विवेकचूड़ामणि
* जैसे पहाड़ की ऊंची चोटियों पर बसता हुआ जल पर्वत से होता हुआ नीचे के देशों में बह जाता है, वैसे ही एक ही आत्मा, अनेक आत्माओं के रूप में अनेक शरीरों के रूप में प्रतीत होती है।
-कठोपनिषद्
* मन, बुद्धि और इन्द्रियां सब आत्मा के ही विकार हैं।
* जीवन एक अंतहीन यात्रा है—जन्म-मरण, सायुज्य-ज्ञालोक्य, सामीप्य इसके पड़ाव हैं। परंतु यात्रा का अंत है—स्वयं आत्मा को उपलब्ध हो जाना।
-श्रीमद्भागवत महापुराण
* मनुष्य की आत्मा ही साक्षी या द्रष्टाभाव से जगत की घटनाओं को देखती है और शरीर सुख-दुख का अनुभव करता है।
-अद्वैतवेदांत
आत्मसाक्षात्कार द्वारा आत्मानुभूति को प्राप्त कर साधक, सिद्धि होकर पूर्णता को प्राप्त करता है। फिर उसके लिए सुख कैसा, दुख कैसा, सुख कहां, दुख कहां ?
-शंकराचार्य
* स्थूल हाथी से लेकर वनस्पति तक पशु-पक्षियों तथा वन्य प्राणियों और क्षुद्र कीट पतंगों से लेकर मनुष्य तक सभी में आत्मा की अभिव्यक्ति का विस्तार है।
-वेदांत दर्शन
* ब्रह्मज्ञानी, आत्मसाक्षात्कार कर जब अतीन्द्रिय अवस्था को प्राप्त कर पूर्ण होता है, तब वह अपने शरीर का बोझ अपने कंधों पर ढोता है।
-आनंदमूर्ति मां
* काम, क्रोध तथा लोभ यह तीन प्रकार के नरक द्वारा आत्मा मलिन हो जाता है। इसलिए इन तीनों का त्याग कर देना चाहिए
-गीता
* आत्मवान व्यक्ति सभी को अपनी आत्मा में और स्वयं को सभी की आत्मा में एकत्व परमात्व भाव से देखता है।
-अद्वैत वेदान्त
* आत्म तत्त्व के दर्शन, जागरण और समुन्नयन के लिए चार सोपान आवश्यक हैं—आत्म-निरीक्षण, आत्म-सुधार, आत्म-निर्माण और आत्म-विकास।
-स्वामी अवधेशानंद गिरी
* जो स्वयं को चैतन्यस्वरूप आत्माराम मानता है, वह बादशाह है। कल्पनाओं और चिंताओं में मग्न मनसाराम सदा दुख प्राप्त करता है।
-आसाराम बापू जी
* आत्मस्वरूप का बोध होने पर जगत तमाशा दीखने लगेगा और फिर आप दुख में भी हंसने लगोगे।
-स्वामी सत्यमित्रानंद जी
* जीवन एक अंतहीन यात्रा है—जन्म-मरण, सायुज्य-ज्ञालोक्य, सामीप्य इसके पड़ाव हैं। परंतु यात्रा का अंत है—स्वयं आत्मा को उपलब्ध हो जाना।
-स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज
* जो क्षुधा, पिपासा, शोक, मोह, जरा, मृत्यु से परे है, वही आत्मा है।
-याज्ञवलक्य
* वह आत्मा बिना ही पैरों के चलता है, बिना ही कानों के सुनता है, वह कुछ न करके भी सभी कर्म करता है।
-रामचरितमानस
* यह आत्मा ही सुनने, चिंतन करने और ध्यान करने योग्य है, अन्य सभी सांसारिक कर्म तो व्यर्थ हैं।
-उपनिषद्
• जिस प्रकार दूध में मिलकर दूध, तैल में मिलकर तैल और जल में मिलकर जल एक ही हो जाते हैं, वैसे ही आत्मज्ञानी आत्मा में लीन होने पर आत्मस्वरूप ही हो जाते हैं।
-विवेकचूड़ामणि
* यह जो ज्ञानस्वरूप इन्द्रियों से घिरा हुआ हृदय के अंदर ज्योति पुरुष है, यही आत्मा है।
-बृहदारण्यक उपनिषद्
* एकांत में रहना महान आत्माओं का भाग्य है।
-शोपेनहार
* सृष्टि उसी (आत्मा) का खेल है, वही खिलाड़ी है, वही क्रीड़ास्थल है। ये सारी अभिव्यक्तियां उसके आनन्द रूप की ही अभिव्यक्तियां हैं।
-अरविंद
* आत्मा की प्राथमिक विधा यह है कि आत्मा न ही कोई विषय है, न ही विषयरूप है।
-कृष्णचन्द्र भट्टाचार्य
* अमरता आत्मा में निहित सभी शक्तियों की परिणति है।
-मुहम्मद इकबाल
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